अगले 10 साल में शेयर बाजार कितना बढ़ेगा?

 

अगले 10 साल में शेयर बाजार कितना बढ़ेगा?

अगले 10 सालों में शेयर बाजार कितना बढ़ेगा, यह सवाल हर निवेशक के मन में घूमता रहता है। भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित हो रही है और आने वाले वर्षों में यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की ओर अग्रसर है। ऐसे में शेयर बाजार की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। बीते कुछ दशकों पर नज़र डालें तो सेंसेक्स और निफ्टी ने लंबी अवधि में हमेशा निवेशकों को शानदार रिटर्न दिया है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ – टेक्नोलॉजी, इंफ्रास्ट्रक्चर, बैंकिंग, डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप कल्चर – आने वाले वर्षों में शेयर बाजार को नई बुलंदियों पर पहुंचाने की ताकत रखते हैं। विश्लेषकों का अनुमान है कि अगर देश 6-7% की वार्षिक वृद्धि दर बनाए रखता है और कंपनियों की कमाई मजबूत बनी रहती है, तो अगले दस सालों में भारतीय बाजार आज की तुलना में कई गुना विस्तारित हो सकता है।

हालाँकि, यह भी सच है कि इस दौरान निवेशकों को उतार-चढ़ाव, वैश्विक संकट और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन लम्बी अवधि के नज़रिए से देखें तो भारत का इक्विटी मार्केट एक बेहतरीन wealth-creation मशीन साबित हो सकता है। इसलिए सवाल यह नहीं कि बाजार बढ़ेगा या नहीं, बल्कि यह है कि हम कितनी समझदारी से उसमें हिस्सा लेते हैं।

अगले 10 साल में शेयर बाजार कितना बढ़ेगा?

शेयर बाज़ार के भविष्य को लेकर उत्सुक होना स्वाभाविक है। खासकर भारत जैसे तेज़ी से बढ़ते देश में, जहाँ डिजिटलाइजेशन, मैन्युफैक्चरिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर और फाइनेंशियलाइजेशन की लहर एक साथ आगे बढ़ रही है, यह सवाल और भी बड़ा हो जाता है—अगले 10 साल में शेयर बाजार कितना बढ़ेगा? इस प्रश्न का कोई एक-संकटमुक्त, सटीक उत्तर नहीं है, लेकिन हम तर्क, इतिहास, कमाई (earnings), वैल्यूएशन और जोखिम जैसे स्तंभों के आधार पर संभावित परिदृश्य समझ सकते हैं। इस लेख का मकसद है उत्साहजनक संभावनाओं और वास्तविक चुनौतियों के बीच संतुलन स्थापित करते हुए निवेशकों के लिए एक व्यवहारिक दिशा-निर्देश प्रस्तुत करना।

1) “कितना बढ़ेगा” पूछने से पहले “क्यों बढ़ेगा/क्यों नहीं” समझें

अगले दशक में बाजार का ट्रैजेक्टरी तय करने वाले बड़े कारक:

आर्थिक विकास (GDP Growth): अगर अर्थव्यवस्था 6–7%+ रियल जीडीपी से बढ़ती है, तो कॉर्पोरेट रेवेन्यू और मुनाफ़े लंबी अवधि में उसी दिशा में बढ़ते हैं।

कमाई की वृद्धि (Earnings Growth): इंडेक्स की रिटर्न का दीर्घकालिक इंजन EPS (प्रति शेयर कमाई) की वृद्धि है।

मुनाफे की रफ्तार वैल्यूएशन के रास्ते पर चलती है। P/E या P/B जैसे मल्टिपल बढ़े तो रिटर्न रॉकेट की तरह उड़ सकते हैं, लेकिन अगर यही मल्टिपल सिकुड़े तो बुनियाद मजबूत होने के बाद भी रिटर्न की गति थम सकती है।

बैंकिंग प्रणाली का स्वास्थ्य और निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) की नई लहर अगले दशक के उभरते सितारों का मार्गदर्शन करेगी, विशेष रूप से पूंजीगत वस्तुओं, सीमेंट, इंजीनियरिंग और औद्योगिक क्षेत्रों में।

डेमोग्राफिक्स व फाइनेंशियलाइजेशन: युवा आबादी, बढ़ती आय, और म्यूचुअल फंड/SIP का पैठ बाज़ार में स्थिर प्रवाह बना सकता है।

वैश्विक वातावरण: कमोडिटी कीमतें, डॉलर इंडेक्स, जियो-पॉलिटिक्स—ये सभी वैल्यूएशन और फंड-फ्लो को प्रभावित करेंगे।

2) इतिहास क्या कहता है? संकेत, लेकिन गारंटी नहीं

इतिहास भविष्य के लिए एक 'तुकबंदी' करता है, न कि नकल। दीर्घकाल में, भारतीय शेयर बाजार ने मुद्रास्फीति से अधिक वास्तविक वृद्धि और कमाई में बढ़त के चलते आकर्षक रिटर्न दिए हैं। हालाँकि, इस यात्रा में कई बार जोरदार गिरावट, लंबे दौर का समेकन और क्षेत्रीय बदलाव भी देखने को मिले हैं।

निष्कर्ष: यदि अर्थव्यवस्था टिकाऊ रूप से बढ़ती है और कॉर्पोरेट कमाई उसका अनुसरण करती है, तो इंडेक्स भी दीर्घकाल में ऊपर की ओर झुकाव दिखाता है—पर रास्ता सीधा नहीं, झटकों से भरा होता है।

3) तीन परिदृश्य: बेस, बुल और बियर

निवेश की योजना बनाते समय “एक संख्या” पर विश्वास करने के बजाय परिदृश्य बनाना बेहतर है। नीचे एक सरल रूपरेखा है:

(A) बेस केस (यथार्थवादी, संतुलित)

GDP growth: ~6–6.5% वास्तविक, ~10–11% नाममात्र

कमाई (EPS) ग्रोथ: ~12–14% CAGR

वैल्यूएशन: मौजूदा स्तरों के आसपास स्थिर/हल्का mean-reversion

10-वर्षीय इंडेक्स CAGR: ~10–12% (डिविडेंड सहित ~11–13%)

(B) बुल केस (अनुकूल हवाएँ, रिफॉर्म्स डिलीवर)

GDP growth: ~7%+ वास्तविक, नाममात्र ~12%

EPS growth: ~15–18% CAGR (कैपेक्स अपसाइकिल + वित्तीय सेक्टर की मजबूत क्रेडिट ग्रोथ)

वैल्यूएशन: मल्टिपल stable से थोड़ा expand

10-वर्षीय इंडेक्स CAGR: ~13–16% (डिविडेंड सहित ~14–17%)

(C) बियर केस (झटके/वैल्यूएशन कंप्रेशन)

GDP growth: ~5% के आस-पास

EPS growth: ~8–10%

वैल्यूएशन: प्राइस-टू-अर्निंग्स में mean-reversion से नीचे तक दबाव

10-वर्षीय इंडेक्स CAGR: ~6–8% (डिविडेंड सहित ~7–9%)

नोट: इन अनुमानों को एक रोडमैप के रूप में देखें, न कि कोई गंतव्य। ये किसी विशेष निवेश की सिफारिश नहीं करते, बल्कि बाजार की संरचना को समझने में मदद करते हैं। याद रखें, वास्तविकता इस रोडमैप से अलग और अप्रत्याशित मोड़ ले सकती है।

4) ‘कितना’ को संख्याओं में समझें: चक्रवृद्धि की जादूगरी

मान लें कि किसी सूचकांक में 10 वर्षों की अवधि में 10% का सीएजीआर (CAGR) हासिल होता है।

₹1,00,000 → 10 साल में ~₹2,59,000

अगर 12% CAGR हो:

₹1,00,000 → ~₹3,10,000

और 15% CAGR हो:

₹1,00,000 → ~₹4,05,000

यही चक्रवृद्धि का जादू है—दर में छोटे बदलाव, परिणाम में बड़े फर्क। इसलिए निवेशक के लिए 2–3% अतिरिक्त CAGR हासिल करना दीर्घकाल में बहुत मायने रखता है।

5) कौन-सी थीम्स अगले दशक को आकार दे सकती हैं?

अगले 10 साल में शेयर बाजार कितना बढ़ेगा?

मैन्युफैक्चरिंग व कैपेक्स अपसाइकिल: PLI योजनाएँ, सप्लाई-चेन डाइवर्सिफिकेशन, रक्षा/इलेक्ट्रॉनिक्स/ऑटो-कंपोनेंट्स में अवसर।

इन्फ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन: सड़क, रेल, पोर्ट, एयरपोर्ट, रिन्यूएबल—ऑर्डर बुक और एग्ज़िक्यूशन क्षमता विजेता तय करेगी।

फाइनेंशियल्स (बैंक/NBFC/इंश्योरेंस): क्रेडिट डिमांड, एसेट क्वालिटी, और फाइनेंशियलाइजेशन से स्थिर प्रॉफिट पूल।

डिजिटल व SaaS/सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम: AI/क्लाउड/आईओटी—कौन execution दिखाता है, यह निर्णायक होगा।

कंज़्यूमर अपग्रेडेशन: प्रीमियमाइजेशन, क्वालिटी ब्रांड, डिस्क्रेशनरी स्पेंड।

ग्रीन एनर्जी/ट्रांजिशन: सोलर, विंड, ग्रीन हाइड्रोजन, स्टोरेज—लेकिन कैपेक्स-इंटेंसिव, इसलिए बैलेंस शीट पर नज़र ज़रूरी।

हेल्थकेयर और फार्मा: R&D, CDMO, अस्पताल—नियमक (regulatory) जोखिम और इनोवेशन दोनों साथ चलते हैं।

थीम चुनना आसान है; सही कंपनियाँ, सही वैल्यूएशन और सही होल्डिंग-होराइजन चुनना कठिन। यही अल्फ़ा का स्रोत है।

6) जोखिम कहाँ छिपे हैं?

वैल्यूएशन कंप्रेशन: अगर आप बहुत ऊँचे मल्टिपल पर खरीदते हैं, तो कमाई बढ़ने पर भी रिटर्न सीमित हो सकते हैं।

वैश्विक झटके: तेल की कीमतें, जियो-पॉलिटिकल तनाव, डॉलर स्ट्रेंथ—इनका असर उभरते बाजारों पर अधिक पड़ता है।

ब्याज़ दरें और लिक्विडिटी: सख्त मौद्रिक नीति वैल्यूएशन को दबा सकती है, खासकर हाई-ग्रोथ/हाई-ड्यूरेशन शेयरों में।

सेक्टर-रोटेशन: एक दशक का विजेता अगले दशक में अंडरपरफॉर्म कर सकता है। विविधीकरण और री-बैलेंसिंग अनिवार्य है।

व्यक्तिगत अनुशासन: गलत समय पर घबराकर बेचना, ओवर-लीवरेज, टिप्स-चेज़िंग—ये वास्तविक रिटर्न खा जाते हैं।

7) निवेशक के लिए उपयोगी फ्रेमवर्क: “GQV + PM”

एक सरल लेकिन असरदार फ्रेमवर्क—GQV + PM:

G (Growth): रेवेन्यू/मार्जिन/ROCE/कैश फ्लो का 3–5 साल का रास्ता।

Q (Quality): कॉर्पोरेट गवर्नेंस, बैलेंस शीट, प्रोमोटर ट्रैक रिकॉर्ड।

वैल्यूएशन मूल्यांकन: विकास दर के सापेक्ष मूल्य निर्धारण (PEG अनुपात), उद्यम मूल्य से EBITDA अनुपात (EV/EBITDA) और मुक्त नकदी प्रवाह यील्ड (FCF Yield) जैसे संकेतकों का सामंजस्यपूर्ण विश्लेषण।

PM (Portfolio Management): एंट्री-एग्ज़िट अनुशासन, पोज़िशन साइजिंग, विविधीकरण, री-बैलेंसिंग।

यह फ्रेमवर्क याद दिलाता है कि रिटर्न = बिज़नेस क्वालिटी × समय × सही कीमत × अनुशासन।

8) लक्ष्य-आधारित निवेश: “इंडेक्स कितना बढ़ेगा” से “मुझे क्या चाहिए” तक

बहुत-से निवेशक “इंडेक्स कहाँ होगा” पर अटक जाते हैं, जबकि व्यक्तिगत वित्त का मूल प्रश्न है:

मुझे 10 साल में किन लक्ष्यों के लिए कितनी रकम चाहिए?

मेरा वर्तमान कॉर्पस कितना है?

मुझे किस CAGR की आवश्यकता है? और इस CAGR के लिए किस जोखिम स्तर तक जाना उचित है?

उदाहरण के लिए, अगर आपको 10 साल में ₹50 लाख चाहिए और आज आपके पास ₹10 लाख हैं, तो

10% CAGR पर ~₹25.9 लाख, 12% पर ~₹31.1 लाख, 15% पर ~₹40.5 लाख बनेंगे।

गैप भरने के लिए SIP/टॉप-अप रणनीति बनानी पड़ेगी। लक्ष्य-आधारित गणना आपको रियलिस्टिक और अनुशासित रखती है।

9) SIP बनाम लंपसम: समय को दोस्त बनाइए

करता है। दीर्घकाल में यह रणनीति बेहतर परिणाम देती है, क्योंकि इसमें बाजार के समय का अनुमान लगाने (मार्केट टाइमिंग) की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

लंपसम: तब उपयोगी जब वैल्यूएशन आकर्षक हों या आपके पास इनसाइट/अनुशासन हो। अन्यथा लंपसम + STP (Systematic Transfer Plan) का मिश्रण जोखिम घटा सकता है।

टॉप-अप SIP: आय बढ़ने के साथ सालाना 5–10% SIP बढ़ाने से अंतिम कॉर्पस पर बड़ा असर पड़ता है।

10) “ड्रॉडाउन-रेडी” रहना: वास्तविकता का टेस्ट

अगले 10 साल में 2–3 बड़े करेक्शन (20–30%) और एक गंभीर बेयर फेज़ (30–50%) आना असामान्य नहीं है। जो निवेशक इन ड्रॉडाउन के दौरान भी अपनी रणनीति पर टिके रहते हैं—एसेट एलोकेशन का पालन करते हैं, इमरजेंसी फंड और उचित बीमा रखते हैं—लंबी अवधि में अक्सर बेहतर निकलते हैं।

सीख: ऊँचा CAGR तभी मिलता है जब आप अस्थिरता सहन कर सकते हैं। जोखिम प्रबंधन रिटर्न का दुश्मन नहीं, सबसे अच्छा दोस्त है।

11) व्यावहारिक ब्लूप्रिंट: अगले दशक के लिए एक संतुलित योजना

एक सुनियोजित पोर्टफोलियो रणनीति के तहत एसेट्स का आवंटन करें—इक्विटी, ऋण, सोना और वैश्विक एक्सपोजर को अपने जोखिम प्रोफाइल के अनुरूप 60:30:10 या 70:20:10 जैसे अनुपात में व्यवस्थित करें।

अपने निवेश की नींव कम-खर्च वाले इंडेक्स फंड्स पर रखें, जिसमें निफ्टी, सेंसेक्स या व्यापक बाजार कवरेज वाले इंडेक्स को अपने कोर पोर्टफोलियो का आधार बनाएं।

सैटेलाइट अलोकेशन में थीमैटिक/स्मॉल-मिडकैप: लेकिन सख्त लिमिट्स और वैल्यूएशन-डिसिप्लिन के साथ।

SIP + टॉप-अप अनिवार्य: आय बढ़ने पर निवेश बढ़ाएँ, लक्ष्य के साथ लिंक करें।

वार्षिक री-बैलेंसिंग: ओवररनिंग सेक्टर्स से मुनाफ़ा बुक कर लक्ष्य एलोकेशन पर लौटें।

फाइनेंशियल सेफ्टी नेट: टर्म इंश्योरेंस, हेल्थ कवर और 6–9 महीने की आपातकालीन बचत।

टैक्स-एफिशिएंसी: ELSS, दीर्घकालिक कैपिटल गेन स्ट्रेटेजी, और बेवजह चurning से बचें।

सीखते रहें: एक–दो अच्छे वार्षिक लेटर्स/रिसर्च सोर्स फॉलो करें; शोर से दूरी रखें, डेटा से दोस्ती।

12) तो आखिर अगले 10 साल में बाजार कितना बढ़ेगा?

उपरोक्त आधार परिदृश्य के अनुसार, अगले दशक में इंडेक्स स्तर पर लगभग 10-12% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (डिविडेंड सहित ~11-13%) संभावित appears है। यदि अनुकूल परिस्थितियाँ बनी रहीं, सुधारों का क्रियान्वयन सफल रहा और कॉर्पोरेट कमाई में 15%+ की वार्षिक वृद्धि हुई, तो सर्वोत्तम परिदृश्य में 13-16% CAGR सम्भावित है। वहीं, बाह्य या आंतरिक आघातों, वैल्यूएशन में सिकुड़न और कमाई की रफ्तार धीमी होने की स्थिति में निराशावादी परिदृश्य में CAGR 6-8% तक सीमित रह सकता है।

याद रखें, "इंडेक्स का CAGR" और "आपका वास्तविक CAGR" अलग-अलग चीजें हैं। आपका रिटर्न इस बात पर निर्भर करेगा कि आपने निवेश कब शुरू किया, किस कीमत पर, आपके पोर्टफोलियो की रचना कैसी थी, और मंदी के दौर में आपने कैसा व्यवहार किया। इसीलिए अनुशासन, सही एसेट एलोकेशन, लागत पर नियंत्रण और दीर्घकालिक नज़रिया – ये चार सूत्र ही वास्तविक सफलता की कुंजी हैं।

13) अंतिम विचार: सही प्रश्न पूछिए, सही रास्ता चुनिए

अगले 10 साल में बाजार कितना बढ़ेगा?” महत्वपूर्ण प्रश्न है, पर उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है ये पूछना:

क्या मेरा पोर्टफोलियो अगले 10 साल में टिकाऊ कमाई वाली कंपनियों की तरफ झुका है?

क्या मेरे पास ऐसा एसेट एलोकेशन है जो मुझे रातों की नींद भी दे और लक्ष्य तक पहुँचने की संभावना भी?

क्या मैं कास्ट-इफिशिएंट इंडेक्स/फंड्स को आधार बनाकर, सीमित हिस्से में अल्फ़ा की कोशिश कर रहा हूँ?

क्या मैं ड्रॉडाउन-रेडी हूँ—इमरजेंसी फंड/बीमा/री-बैलेंसिंग प्लान के साथ?

जब ये उत्तर स्पष्ट होते हैं, तो बाजार की रफ़्तार से फर्क तो पड़ता है, लेकिन आपकी फाइनेंशियल डेस्टिनेशन फिर भी हासिल होने लगती है। अगले दशक में भारतीय इक्विटी की कहानी रुकने वाली नहीं दिखती—पर जीत उसी की होगी जो उम्मीद और अनुशासन दोनों को साथ लेकर चले।

हर निवेशक जानना चाहता है कि अगले दशक में शेयर बाजार कितना ऊपर जाएगा। पर सच यह है कि बाजार अनुमानों को हमेशा चुनौती देता रहा है। आर्थिक नीतियाँ, वैश्विक परिस्थितियाँ, तकनीकी क्रांति, निवेशकों की बढ़ती संख्या और कंपनियों की विकास दर—ये सब मिलकर बाजार का रुख तय करेंगे। यदि भारत 6-7% की सतत आर्थिक वृद्धि दर बनाए रखता है और कॉर्पोरेट मुनाफा बढ़ता रहता है, तो सेंसेक्स और निफ्टी अभूतपूर्व ऊँचाइयाँ छू सकते हैं।

हालाँकि, निवेशक को यह समझना होगा कि शेयर बाजार सीधा रास्ता नहीं है। इसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, और हर गिरावट के साथ ही नए अवसर पैदा होते हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि लंबी अवधि का नजरिया अपनाया जाए और निवेश को धैर्य के साथ किया जाए।

अंत में, अगले 10 साल में शेयर बाजार निश्चित रूप से बड़ी संभावनाएँ लेकर आएगा। जो लोग रिसर्च, अनुशासन और धैर्य के साथ निवेश करेंगे, वे न केवल बाजार की वृद्धि का लाभ उठाएंगे, बल्कि अपनी वित्तीय स्वतंत्रता की ओर भी कदम बढ़ा पाएंगे। समझदारी से किया गया निवेश ही आने वाले दशक में सफलता की कुंजी बनेगा।

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अगले 10 साल में शेयर बाजार कितना बढ़ेगा? – प्रश्नोत्तर

Q1. अगले 10 साल में भारतीय शेयर बाजार की ग्रोथ किस पर निर्भर करेगी?

Ans: भारतीय शेयर बाजार की ग्रोथ मुख्य रूप से GDP ग्रोथ, कॉर्पोरेट अर्निंग्स, सरकारी नीतियों, टेक्नोलॉजी एडॉप्शन और ग्लोबल इकोनॉमी की स्थिति पर निर्भर करेगी।

Q2. क्या सेंसेक्स अगले 10 सालों में दोगुना हो सकता है?

Ans: विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट 6–7% बनी रही और कंपनियों के प्रॉफिट्स 12–15% CAGR से आगे बढ़े, तो आने वाले दशक में सेंसेक्स आसानी से दोगुना या उससे ज्यादा हो सकता है।

Q3. निवेशकों को लंबी अवधि में किन सेक्टर्स से सबसे ज्यादा रिटर्न मिल सकता है?

Ans: लंबी अवधि में आईटी, ग्रीन एनर्जी, फार्मा, बैंकिंग-फाइनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर और कंज्यूमर सेक्टर निवेश के लिए आकर्षक अवसर साबित हो सकते हैं।

Q4. क्या भारत का शेयर बाजार अगले 10 सालों में दुनिया के टॉप 3 बाजारों में शामिल हो सकता है?

Ans: जी हाँ, भारत की बड़ी जनसंख्या, बढ़ता मध्यम वर्ग और डिजिटल इकॉनमी इसे दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते बाजारों में से एक बना सकते हैं।

Q5. रिटेल निवेशकों का योगदान आने वाले 10 सालों में कितना अहम होगा?

Ans: रिटेल इन्वेस्टर्स SIP और डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के जरिए बड़ी भूमिका निभाएँगे। आने वाले दशक में म्यूचुअल फंड्स में निवेश कई गुना बढ़ सकता है।

Q6. अगले 10 सालों में मार्केट वैल्यूएशन पर क्या असर पड़ेगा?

Ans: विशेषज्ञों का अनुमान है कि लगातार आर्थिक प्रगति भारत की मार्केट कैप को $10 ट्रिलियन से अधिक स्तर पर पहुँचा सकती है।

Q7. क्या विदेशी निवेश (FII) भारत की ग्रोथ को बढ़ावा देगा?

Ans: हाँ, ग्लोबल इन्वेस्टर्स भारत को "अगला ग्रोथ डेस्टिनेशन" मान रहे हैं, जिससे भारी मात्रा में FII फ्लो आने की संभावना है।

Q8. क्या हर निवेशक को अगले 10 साल में बड़ा रिटर्न मिलेगा?

Ans: जरूरी नहीं। सही रिसर्च, लंबी अवधि का निवेश और अच्छे फंडामेंटल वाले स्टॉक्स चुनने वालों को ही बेहतर रिटर्न मिलेगा।

Q9. क्या शेयर बाजार में अगले 10 सालों में बड़े उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे?

Ans: हाँ, शॉर्ट टर्म में मंदी, महंगाई और ग्लोबल क्राइसिस के कारण वोलैटिलिटी रहेगी, लेकिन लॉन्ग टर्म में ग्रोथ पॉजिटिव रहने की संभावना है।

Q10. एक आम निवेशक को अगले 10 साल में क्या स्ट्रैटेजी अपनानी चाहिए?

Ans: नियमित SIP करना, पोर्टफोलियो डाइवर्सिफाई करना, लंबे समय तक बने रहना और भावनाओं के बजाय रिसर्च के आधार पर निवेश करना सबसे बेहतर रणनीति है।

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